भारत में स्वच्छता न होने के कारण – पर एक निबंध

स्वच्छता केवल एक आदत नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य, बल्कि देश की छवि, पर्यावरण और समाज की समृद्धि से जुड़ी हुई है। भारत जैसे विशाल देश में जहां विविधता और जनसंख्या अत्यधिक है, वहां स्वच्छता एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। सरकार द्वारा कई प्रयासों के बावजूद आज भी भारत में अनेक स्थानों पर गंदगी, कूड़ा-कचरा, खुले में शौच और अस्वच्छ वातावरण आम देखने को मिलते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिन पर चर्चा करना आवश्यक है। स्वच्छता न होने के प्रमुख कारण 1. जनता की लापरवाही और आदतें भारत में स्वच्छता की कमी का सबसे बड़ा कारण है – आम नागरिकों की लापरवाही। लोग सड़क पर थूक देना, कूड़ा फेंक देना, या सार्वजनिक शौचालयों का प्रयोग न करना आम बात मानते हैं। सफाई को व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं बल्कि सरकार की जिम्मेदारी समझा जाता है। 2. शिक्षा और जागरूकता की कमी ग्रामीण इलाकों और कुछ शहरी बस्तियों में आज भी स्वच्छता के प्रति लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। खुले में शौच, नाले में कूड़ा फेंकना या नदियों को गंदा करना आज भी सामान्य व्यवहार में शामिल है। 3. अपर्याप्त बुनियादी ढांचा कई क्षेत्रों में उचित कचरा निपटान प्रणाली, सार्वजनिक शौचालय, सीवेज व्यवस्था और सफाई कर्मचारियों की कमी स्वच्छता की समस्या को बढ़ावा देती है। छोटे शहरों और गांवों में तो यह समस्या और भी गंभीर है। 4. जनसंख्या का दबाव भारत की अत्यधिक जनसंख्या ने भी स्वच्छता व्यवस्था पर भारी दबाव डाला है। अधिक जनसंख्या के कारण सफाई व्यवस्था पर अधिक बोझ पड़ता है, और संसाधन कम पड़ जाते हैं। 5. राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता कुछ क्षेत्रों में सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा स्वच्छता अभियानों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। कचरे का नियमित निपटान न होना, सफाई कर्मचारियों की अनदेखी और बजट का सही उपयोग न होना, ये सभी स्वच्छता की स्थिति को बिगाड़ते हैं। स्वच्छता की कमी से होने वाले दुष्परिणाम स्वास्थ्य समस्याएं अस्वच्छ वातावरण से डेंगू, मलेरिया, हैजा, डायरिया जैसे रोग फैलते हैं। बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को इसका अधिक खतरा होता है। पर्यावरण प्रदूषण कचरे का जल स्रोतों में गिरना, प्लास्टिक का खुले में जलना, और नालों में गंदगी डालना – ये सभी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। देश की छवि पर प्रभाव गंदगी से पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित होती है। विदेशी पर्यटक भारत आकर जब गंदगी देखते हैं, तो देश की छवि धूमिल होती है। आर्थिक हानि बीमारियों से इलाज पर खर्च बढ़ता है, कामकाजी दिनों का नुकसान होता है और उत्पादकता घटती है। गंदगी से देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। सरकारी प्रयास सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनमें प्रमुख हैं: स्वच्छ भारत अभियान (2014): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया यह मिशन भारत को खुले में शौच मुक्त और साफ बनाने के उद्देश्य से चलाया गया। लाखों शौचालय बनाए गए और जागरूकता फैलाई गई। स्वच्छता एप और ऑनलाइन शिकायत तंत्र: नागरिक अब सफाई से जुड़ी समस्याएं सीधे रिपोर्ट कर सकते हैं। कचरा प्रबंधन नियम, 2016: इसके अंतर्गत ठोस कचरे का सही तरीके से निपटान सुनिश्चित करने की योजना बनी। हालांकि इन योजनाओं में कुछ क्षेत्रों में सफलता मिली है, पर पूर्ण रूप से लक्ष्य अब भी दूर है। स्वच्छता सुधारने के उपाय जन-जागरूकता अभियान बढ़ाना स्कूल, कॉलेज, टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाना जरूरी है। शिक्षा में स्वच्छता को शामिल करना बचपन से ही बच्चों को स्वच्छता की शिक्षा देना, जैसे – हाथ धोना, कूड़ेदान में कचरा फेंकना, शौचालय का सही उपयोग। सख्त कानून और जुर्माना जो लोग सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाते हैं, उन पर जुर्माना लगाया जाए ताकि डर और जिम्मेदारी दोनों बनी रहे। स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना नगर पालिका और पंचायतों को वित्तीय और प्रशासनिक रूप से सक्षम बनाना चाहिए, ताकि वे अपने क्षेत्रों में सफाई व्यवस्था बेहतर तरीके से संभाल सकें। नागरिकों की भागीदारी सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं, हर नागरिक को अपने मोहल्ले, गली और समाज को साफ रखने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। निष्कर्ष भारत में स्वच्छता की स्थिति चिंताजनक है, लेकिन असंभव नहीं। यदि सरकार, समाज और हर नागरिक मिलकर काम करें, तो यह देश सबसे स्वच्छ और सुंदर बन सकता है। जरूरत है आदत बदलने की, सोच बदलने की, और यह समझने की कि स्वच्छता केवल “अभियान” नहीं, बल्कि हर दिन की आदत होनी चाहिए। "स्वच्छ भारत तभी संभव है, जब हर भारतीय स्वच्छता को अपनाए।" यदि आप चाहें, तो मैं इस लेख को स्कूल प्रोजेक्ट या पोस्टर अभियान के लिए उपयुक्त रूप में भी तैयार कर सकता हूँ।

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